कांकेर/ 1942 में अंग्रेज़ों के विरुद्ध क्रांति करने वाले 19 वर्षीय युवक, सिंध के सरताज, भारत मां के लाल, हेमू कालाणी जी ने हँसते हुए फांसी चढ़ कर वतन के लिए अपनी कुर्बानी दी थी। उनकी याद में आज काँकेर शहर में संध्याकाल गांधी उद्यान में मोमबत्तियों से उजाला बिखेर कर सिंध समाज तथा अन्य समाज के भी नवयुवकों ने उनके चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए और अमर शहीद की याद में नारे भी लगाए। इस अवसर पर जन सहयोग संस्था के अध्यक्ष अजय पप्पू मोटवानी ने भाषण देते हुए बताया कि 1942 के क्रांतिवीर तो हज़ारों में थे लेकिन उनमें से हेमू कालाणी अपनी अलग ही चमक-दमक रखते थे। उन्हें उस समय जब पता लगा कि पेशावर के मिलिट्री सेंटर से अंग्रेज़ सिपाहियों से भरी हुई एक ट्रेन कराची आ रही है और ये सिपाही यहां बेकसूर सिंधियों पर दमन चक्र चलाएंगे, तब उन्होंने तय किया कि इस ट्रेन को कराची पहुंचने के पहले ही पलट दिया जाए । इसके लिए वे अपने दो भरोसे के साथियों सहित रेंच और पाना लेकर एक सुनसान स्थान पर रेल की पटरी खोलने में लगे हुए थे, तभी आवाज़ सुनकर कुछ सैनिक उधर दौड़ते हुएआने लगे। हेमू कालाणी ने अपने दोनों साथियों को वहां से फ़रार कर दिया और खुद बहादुरी से डटे रहे। सैनिकों ने उनसे पूछा कि तुम्हारे वे दोनों साथी कौन हैं, तो हेमू का जवाब था ,यह रेंच और पाना ,यही मेरे दो साथी है और मैं यहां रेल की पटरी उखाड़ने आया हूं। वे फौरन गिरफ़्तार हो गए और इक़बाल ए जुर्म के कारण उन्हें फांसी की सज़ा सुनाने में मजिस्ट्रेट को 1 मिनट भी नहीं लगा। जब उन्हें फांसी दी जा रही थी तो आखिरी इच्छा पूछने पर उन्होंने अपने हाथ पीछे बांधने और काला टोपा पहनने से इनकार किया और जल्लाद के हाथ से फांसी का फंदा लेकर स्वयं अपने गले में फूलों के हार की तरह डाल लिया, कि यही हमारी अंतिम इच्छा है। फिर हँसते मुस्कुराते हुए सब से विदाई लेकर जेलर और जल्लाद को भी सलाम दुआ कर फांसी पर चढ़ गए। जल्लाद बहुत पुराना था और उसने सैकड़ों पत्थरदिल डाकू और खूनियों को भी फांसी के फंदे के आगे कांपते- रोते देखा था। वह जब तक ज़िन्दा रहा, शहीद हेमू कालाणी की बहादुरी के गुण गाता रहा। शहीद हेमू को मात्र इस बात का अफ़सोस रह गया था कि अंग्रेज़ सिपाहियों से भरी हुई ट्रेन को गिरा नहीं पाए। बाद में हमारे काँकेर के जोतूमलजी आसवानी और उनके साथियों ने आगे चलकर मौक़ा पाते ही हेमू कालाणी जी की यह इच्छा पूरी कर दी, जो एक इतिहास है। आज 21 जनवरी 2025 के इस श्रद्धांजलि कार्यक्रम में भाग लेने वाले साथियों के नाम इस प्रकार हैं-:-
“जन सहयोग ” के अध्यक्ष अजय पप्पू मोटवानी, अरविंद चौहान, समाजसेवी मोहन सेनापति, लक्ष्मी पटेल, अनुकृति, अवध गढ़पाले, लक्ष्मी पटेल, डोमेश वलेचा, संजय मन्शानी, चुरेंद्र, सदा साहू ,रोशन वाल्मीकि, यामिनी ,किरण मानस, कल्पना नेताम, गाथा नेताम, खुशीराम, प्रदीप, विनोद, देवेंद्र ध्रुव आदि ने अत्यंत श्रद्धापूर्वक उपर्युक्त श्रद्धांजलि कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग दिया।