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राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित पंडवानी गायक दुष्यंत द्वेदी का आज होगा दुर्गा चौक नरहरपुर में कार्यक्रम

नरहरपुर/ रामोत्सव अयोध्या में श्रीराम लला मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा वर्षगांठ के अवसर पर नगर पंचायत नरहरपुर में त्रिदिवसीय मानस महोत्सव कार्यक्रम चल रहा है,और आज समापन अवसर पर छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पंडवानी गायक दुष्यंत द्वेदी जी के द्वारा पंडवानी की प्रस्तुति रात्रि 8 बजे से होना है।
भारत में खासकर छत्तीसगढ़ राज्य की पंडवानी गायन देश के साथ-साथ विदेश में भी विख्यात है पंडवानी गायन की दो विधि है, एक कापालिक, दूसरा वेदमाती। वेदमती शैली की गायक को विरासन हनुमान जी की स्थिति बनाकर बैठकर पंडवानी प्रस्तुत करना पड़ता है ,लगातार विरासन या हनुमान जी के बैठने की स्थिति में यह बहुत कठिन रहता है इसमें छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कलाकार दुष्यंत द्विवेदी जी का नरहरपुर आगमन हो रहा है।
भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय की स्वायत्त संस्था “संगीत नाटक अकादमिक ” नई दिल्ली द्वारा उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ युवा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित श्री दुष्यंत द्वेदी जी से ऐती ओती के संदेश के सम्पादक मनोहर ठाकुर से खास बातचीत हुई,जिसमें उसने सहज रूप से द्वेदी जी ने हमारे सवालो का जवाब दिया।पहला सवाल रहा– आपकी प्रारंभिक शिक्षा कहां हुई ,अभी वर्तमान में पंडवानी गायन के अलावा और क्या करते हैं?
श्री द्वेदी जी ने कहा—
“मेरी प्रारम्भिक शिक्षा ग्राम गुजरा जिला बालोद में हुई , तदुपरान्त रायपुर के श्री दूधाधारी मठ में संस्कृत विषय में अध्ययन का क्रम 8 वीं से 12वीं तक चला , उसके बाद रायपुर के शासकीय संस्कृत महाविद्यालय में शास्त्री और आचार्य की उपाधि प्राप्त की । बी एड के साथ पीजीडीसीए की उपाधि भी प्राप्त की है , पंडवानी गायन के अलावा वर्तमान में शासकीय स्वामी आत्मानन्द विद्यालय अमलेश्वर जिला दुर्ग में संस्कृत व्याख्याता के पद पर पदस्थ हूँ ।”

हमने अगला सवाल कि आपने पंडवानी गायन को क्यों चुना? आपके प्रेरणास्रोत में किनका महत्वपूर्ण योगदान है? व परिवार, मित्र का कैसा सहयोग रहा।”

श्री द्वेदी जी ने कहा कि
“बचपन से ही गीत, संगीत की ओर रुचि थी , कभी सोंचा नही था कि पण्डवानी गायन की ओर अग्रसर होना है , लेकिन पंडवानी ने मुझे चुना या पण्डवानी गायन को मैने चुना ये कह पाना मुश्किल है । मेरे प्रेरणा श्रोत ग्राम पाहन्दा , कुम्हारी जिला दुर्ग के निवासी श्रीमान चेतन देवांगन जी हैं , 2006 में मैं उनके सम्पर्क में आया और 2006 से 2020 तक मैं उनके सानिध्य में रहा । उन्होंने हर कठिनाइयों का सामना करने के लिये मुझे निरन्तर प्रेरित किया , मेरा सम्बल बढ़ाया , पंडवानी गायन में होने वाली छोटी से छोटी गलतियों पर उन्होंने मेरा भरपूर मार्गदर्शन किया ,, मैं श्रीमान चेतन देवांगन जी को अपने पंडवानी गुरु के रूप में प्राप्त करके अत्यंत गर्व का अनुभव करता हूँ , चूंकि वे महाभारत के साथ साथ , मानस मर्मज्ञ , कबीर दर्शन तथा श्रीमद्भगवत गीता के अच्छे जानकार हैं ,, कथा के बीच में किस प्रकार के दृष्टान्तों को मानस की चौपाइयों को श्लोकों को कैसे समाहित किया जा सकता मुझे ये उन्होंने भलि प्रकार समझाया ,,, परिवार वाले तो शुरुआत में थोड़ा रोक टोक किये की हम आपको एक अच्छा पंडित, संस्कृत का विद्वान बनाना चाहतें हैं और आप पंडवानी गायक बनना चाहतें हैं ,,, परन्तु बाद में उन्होंने भी यह अनुभव किया कि ठीक है आप गाइये परन्तु पढ़ाई और परिवार के साथ साथ सामाजिक कर्तव्यों का भी यथावत पालन करते रहिए , मित्रों का तो भरपूर सहयोग हर कदम पर मिलता रहा और वर्तमान में भी मिलता ही रहता है ।”

हमने आगे पूछा कि “आपने पंडवानी गायन की कब से शुरुआत की,शुरूआती दौर में किसी प्रकार समस्या हुई, या लोगो का किस तरह प्रोत्साहन मिला?
श्री द्वेदी जी ने कहा कि — “मैने 2006 से पण्डवानी गायन प्रारम्भ किया , शुरुवाती दौर में तो किसी क्षेत्र में कठिनाई आती ही है , गायन में कथा को प्रस्तुत करने में भाव भंगिमा बनाने में । चूँकि पंडवानी, गायन + वादन + और अभिनय का त्रिवेणी संगम है । एकांगी प्रस्तुति होने के कारण एक पण्डवानी गायक को शुरुआती दौर पर बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है , जो मुझे भी हुआ । सबसे ज्यादा प्रोत्साहित मुझे मेरे गुरु और उनके संगत कारों ने किया । दर्शकों ने भी भरपूर प्रोत्साहित किया जिसके कारण मैं आज मंचों में प्रस्तुति प्रदान कर पाता हूँ ।”
श्री द्वेदी से अगला सवाल किया कि “आपका सबसे महत्वपूर्ण क्षण इस क्षेत्र में कब रहा,जो हमेशा यादगार है”
श्री द्वेदी जी ने कहा–कि
“सबसे महत्वपूर्ण क्षण मेरे पंडवानी गायक के जीवन मे 2016 में आया जब मुझे भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय की स्वायत्त संस्था “संगीत नाटक अकादमी” नई दिल्ली द्वारा उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ युवा पुरस्कार के लिए चयनित किया गया । क्योंकि सम्पूर्ण भारत में युवा कलाकारों को प्रदान किया जाने वाला यह सर्वोच्च पुरस्कार है । इसका श्रेय मेरे गुरु के साथ साथ स्व. पद्मश्री पुनाराम निषाद जी और आदरणीया पद्मविभूषण डॉ तीजन बाई जी को जाता है जिन्होंने मेरे नाम की अनुसंसा संगीत नाटक अकादमी को प्रेषित किया । और यह सम्मान मुझे असम राज्य के गुवाहाटी में असम के तत्कालीन राज्यपाल श्री जगदीश मुखी जी करकमलों द्वारा प्रदान किया गया ।”

हमने पूछा कि” बस्तर क्षेत्र में कार्यक्रम प्रस्तुति कैसा अनुभव करते हैं।”
श्री द्वेदी जी ने कहा–
“बस्तर क्षेत्र चूँकि वनप्रांत है और वँहा के निवासी अत्यंत सरल सहज और धार्मिक तो हैं ही साथ साथ कला के प्रति जो उनका रुझान है वह अत्यंत सराहनीय हैं , वँहा के लोग श्रद्धा तथा एकाग्रता के साथ कथा श्रवण करते हैं और कलाकारों को भरपूर स्नेह प्रदान करते हैं , बस्तर क्षेत्र में कार्यक्रम प्रस्तुत करने में अत्यधिक आंतरिक प्रसन्नता होती है ।”
हमने प्रश्न किया कि” महाभारत में कौन सा कथा प्रसंग प्रस्तुति में सबसे अच्छा लगता है?”
श्री द्वेदी जी ने कहा–कि
” महाभारत में भगवान श्री कृष्ण के साथ साथ पांडवों की जो भगवान के प्रति समपर्ण की भावना है वह मुझे अत्यंत प्रेरणा प्रदान करती है ,,, विशेष कर अर्जुन क्योंकि अर्जुन हर हर कदम पर भगवान का मार्गदर्शन लेते हैं , और यह भी कहते हैं कि मैने तो सँकल्प कर लिया है अब सँकल्प पूर्ण कैसे होगा ये आप जानिए , मैं आपकी कृपा के बिना कुछ करने में असमर्थता महसूस करता हूँ । यँहा तक जब अर्जुन औऱ दुर्योधन जब भगवान से युद्ध के लिये सहायता मांगने गए तो अर्जुन निहत्थे कृष्ण को मांगा और यही कहा कि मेरे शरीर रूपी रथ में इन्द्रिय रूपी घोड़े लगे हुये हैं जो मुझे निरन्तर विषयों की ओर दौड़ाते रहते हैं अतः आप मेरे रथ का बागडोर सम्हाल कर मुझे विषयों से खींच कर ईश्वर भक्ति की और ले चलिए ,,,, अर्जुन का यह संदेश जीव मात्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है ,, जीव को भी अपने इन्द्रिय रूपी घोड़ों की बागडोर भगवान के हाथों में दे देनी चाहिए वो जैसा चाहें इस रथ को चला लें ,, इसलिए मुझे महाभारत में अर्जुन का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावित करता है। और गीता जैसे ज्ञान को अर्जुन ने भगवान से युद्ध के मैदान में प्रकट करवा लिया ,, अतः अर्जुन कोई सामान्य पात्र नही है साक्षात नर श्रेष्ठ हैं अर्जुन ।”

हमने द्वेदी जी से कहा कि–” पंडवानी गायन के माध्यम से परिवार व समाज के लिए क्या संदेश रहता है? व सामाजिक समरसता सद्भाव”
श्री द्वेदी जी ने उत्तर दिया–
“पंडवानी की कथा का मूल आधार महाभारत है ,, जिसमें भाइयो की आपसी रंजिश के कारण महाभारत जैसा भयंकर युद्ध हुवा और ऐसा नर संहार हुवा जो आज तक नही हो पाया ,,, इसका मूल कारण है अभिमान , पुत्र मोह , सम्पत्ति और नारी ,, अगर धृतराष्ट्र पुत्र मोह में अंधे ना होते तो महाभारत नही होता , अगर दुर्योधन भगवान कृष्ण के कहने पर पांडवों को 5 गांव भी दे देता तो महाभारत नही होता , अगर द्रोपदी अँधे का पुत्र अंधा इस प्रकार के व्यंग्य वचन दुर्योधन को नही कहती और उसे अपमानित नही करती तो महाभारत का युद्ध नही होता ,, अतएव पंडवानी गायन के माध्यम से उपरोक्त सन्देश मैं भी परिवार तथा जनसमुदाय को देता हूँ ताकि छोटी छोटी बातों पर या सम्पत्ति को लेकर महाभारत जैसी परिस्तिथि हमारे घर और समाज में उत्पन्न न हो ।”
हमने अंतिम सवाल किया कि–
“आप युवाओं को क्या संदेश देना चाहते है?”
श्री द्वेदी जी ने कहा– “आज के युवा आधुनिक हो चुके हैं होना भी चाहिए आधुनिक युग है ,, परन्तु इतने भी आधुनिक न हों जिससे हम अपनी संस्कृति सभ्यता और संस्कारों से दूर हो जायें । हम ऋषि और कृषि संस्कृति के लोग हैं , और यही दो भारत के मूल प्राण हैं । अतः हमारी इस संस्कृति को जीवंत , सुरक्षित और संवर्धित करने का दायित्व युवा कंधों पर है , बुजुर्गों का अनुभव और युवाओं का जोश जब मिलकर एक हो जायेगा तो यह सम्भव है कि हमारी संस्कृति सभ्यता यथावत रहेगी और भारत पुनः विश्व गुरु के रुप में वैश्विक पटल पर जाना जायेगा ।”
“ऐ रहा आदरणीय युवा पंडवानी गायक कलाकार दुष्यंत द्वेदी जी के साथ संक्षिप्त वार्तालाप”

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